रविवार, 1 मई 2022

हज़ारों फूल बिना मौसम के ही खिलने लगे..thousands of flowers started blooming

हज़ारों फूल बिना मौसम के ही खिलने लगे,

किसीने ख्वाब में आवाज़ दी  हम नींद में चलने लगे...  
सूनी सी डगर जिसमे न कोई साथ न   साया, 
एक बिजली सी चमकी दीप फिर जलने लगे..   
जिनको दूर रखा था तूफानों के दर से,  
वही मांझी बने  कश्ती के और साथ चलने लगे.. 
दिल ने  फिर से धड़कनो का हाथ थामा, 
हज़ारों स्वप्न फिर से   आँख  में पलने लगे।  

"काव्याँश "

Thousands of flowers started blooming without any season,

Someone gave a voice in the dream, we started walking in sleep with no reason...

A deserted road in which no one is with you,

A light shining lamp started burning again..

Those who were kept away from the reach of storms,

The same became the boatmen and started walking along with...

Heart again held the hand of heart beats,

Thousands of dreams started blooming again in the eyes.
 

जीवन का आधार असीमित....Extension of life is unlimited

                               विस्तृत गगन की  ऊँचाई में, 
अतल सिंधु की गहराई में 
हमने देखा खिलता जीवन,
जीवन की तरुणाई में 
                                नदिया के तट हमें समेटा ,
जीवन ने अपनी बाहों में 
                            कड़ी धूप में जीवन पसरा,
पेड़ की  ठंडी छावों में 
प्रेम सन्निहित मद नैनो में, 
बाल सुलभ मन के  सपनों में 
                             जीवन का आभास हुआ है,
सभी परायों और अपनों में 
जीवन का विस्तार असीमित ,
जीवन का आधार असीमित 
अद्भुत ऐसा मीत ये जीवन ,
जिसका तो है  प्यार असीमित 

"काव्यांश"



 In the height of the vast sky,

In the depths of endless ocean.

We saw blooming life,

In the youth of life.

In  the banks of the river, 

life covered us, in her arms.

 Life spread in the scorching sun
,
In the cool shade of trees.

In love embodied Intoxicating eyes,

In the dreams of a child accessible mind.

life felt, In all strangers and loved ones.

Extension of life is  unlimited,

The life is unlimited.

Wonderful such a sweet life,

Whose love is unlimited.

यादों की पोटली...A bundle of memories


एक पुरानी पुस्तक खोली , 

यादों की पोटली टटोली। 

बरबस ही स्मृति पटल पर,

 बिखरी बचपन की हंसी ठिठोली। 

मिट्टी के वे बने घरौंदे,

 वो सावन में डालों के झूले। 

कोई कैसे इन्हे बिसारे,  

कोई कैसे इनको भूले। 

आशा और निराशा से मन, 

 कोसों दूर रहा  करता था।

बैर घृणा सब अर्थहीन थे ,

प्रेम का दरिया बहा करता था। 

दामन में सारी  खुशियाँ थी,

 आँगन में सारी  दुनियाँ थी। 

शामों की पलकें बोझिल थीं,

सेज थी माँ के आँचल की। 

रहे नहीं वे फुर्सत के लम्हे, 

अब न आलम है बेफिक्री का।

जीवन की इस भाग दौड़ में ,

सवाल रहा है दो रोटी का। 

छूट गए सब संगी साथी,

 छूट गए सब उस दौर के यार।

साथ उन्हीके पीछे छूटे,

 नरम धूप और सावन की फुहार। 

ढूंढे से भी अब नहीं मिलते,

उन बीते लम्हों  के जमाने।  

वे गलियां भी कहीं खो गयीं,

 खोये  जहाँ बचपन के खजाने। ...  

"काव्याँश" 


 

Opened an old book,

A bundle of memories.

Absolutely on the memory board,

 Scattered childhood laughter.

Those houses made of clay,

 Those swings of branches in Monsoon.

How could someone disperse them?

How could anyone forget them?

Heart, with hope and despair,

 used to stay far away.

Hatred, animosity was all meaningless,

The river of love used to flow.

There was all the happiness in arm embrace,

 The whole world was in the courtyard.

Evening eyelids were heavy,

It was the bed of mother's lap.

now there are not those moments of leisure,

Now there is no point of carelessness.

In this rush of life,

The question has been of two time meals.

All the fellow friends left,

 All the friends of that era were missed.

left behind them together,

 Soft sunshine and those rainy days,

Can't find it even after searching.

In those bygone times.

Those streets also got lost somewhere,

 Lost where the treasures of childhood. ,

 

kavita...कविता

हार जीत परिणाम समर का नही वीरता का पैमाना निश्छल जिसने युद्ध लड़ा नियति ने सत्यवीर उसे माना मेरी पलकों और नींदों का  रहा हमेशा ब...