गुरुवार, 31 मार्च 2022

मैं दीप जलाया करता हूं, I light a lamp


 मैं दीप जलाया करता हूं
 मैं पुष्प चढ़ाया करता हूं। 
अंतर्मन के भावों का 
संगीत सुनाया करता हूं ।।
 जीवन है सरिता का मृदु जल , 
हर पल बहता रहता है। 
लहरों के आवेगों से 
आलिंगन करता रहता है ।।
जीवन सरिता के जल से 
मैं प्यास बुझाया करता हूं ।
मैं दीप जलाया करता हूं 
मैं पुष्प चढ़ाया करता हूं।।
मेरे असफल प्रयासों की 
बलिवेदी का तट ये जीवन
मेरे अगणित उत्साहों के
पतझड़ का घट ये पूरा उपवन।
इस पतझड़ से तिनके लेकर
मैं महल बनाया करता हूं।
मैं दीप जलाया करता हूं।
मैं पुष्प चढ़ाया करता हूं ।



"काव्यांश"


I light a lamp, I offer flowers.

I play the music of inner feelings.

Life is the sweet water of river, it flows every moment.

Keeps embracing by the impulses of the waves.

I quench my thirst with the water of the stream of life.

I light a lamp, I offer flowers.

बूंद बारिश की, A drop of rain

सहेजो बूंद बारिश की ,किसी के अश्क बरसे हैं।

ये मोती हैं बरसों से किसी सीपी को तरसे हैं।।

घटाओं ने किया बेघर जिन्हे अपने घराने से।

चमकती थी बादलों में अजनबी अब ठिकाने से।।❤

"काव्याँश "



Save a drop of rain, someone's tears have rained.

These are pearls , have been craving for a shell since years.

Those who are homeless by the clouds...

used to shine in the clouds, now 

strangers from their whereabouts.



 

बचपन, CHILDHOOD


 महल रेतों के बनते थे हमारी भी हथेली से 

कभी ऐसा हुनर भी था हाथों की लकीरों में...

"काव्याँश"

Palaces used to be made of sand, even with our palms.

Once upon a time there was such a skill in the lines of hands...


मंगलवार, 29 मार्च 2022

रास्ते और तनहाई, WAYS AND LONELINESS


 रास्ते भी चाहते है पल यहां तन्हाहियो के ...

वे भी आजिज आ चुके हैं धूप और परछाइयों से ..

जाने कितने पैरों ने अपने बोझ से इनको दबाया..

इनकी पीड़ा को जो समझे कोई मुसाफिर ऐसा न आया ।

❤ कैलाश सती "काव्याँश"


Ways are also wanted moments  for loneliness...

They too are fed up with the sun and shadows..

 how many feet pressed them with their burden..

No traveler, who understood their pain, came like this..








रविवार, 27 मार्च 2022

रातें , NIGHTS


 चले जो साथ तेरे गर , कोई साया अंधेरे में..

उसे पलकों पे रख लेना, किसी रौशन सवेरे में.

नही संगदिल हमेशा ही, होती स्याह रातें ये..

अक्सर बांटती हैं दर्द ,उनकी आह रातें ये..

कैलास "काव्यांश


Walk with it, if there is any shadow in the dark..

Keep it on the eyelids, in a bright morning.

 these are dark nights but not always heartless..

Often they share the pain, their sighs, these nights....

अंतर्मन , INNER


अंतर्मन के भावों ने यूं शब्दों का आकार लिया क्यूं।

तोड़ हृदय के तटबंधों को, बह जाना स्वीकार किया क्यूं।।

जब तक थे अनकहे ये मन में सम्मानित थे अभिमानित थे।

अपनी ही मर्यादा लांघी, और अपना ही व्यापार किया क्यूं।। 

कैलास "काव्यांश"


Why did the feelings of the inner take the shape of words in this way?

Broke the embankments of the heart, accepted it to be washed away.

As long as they were untold, they were honored in the mind.

why did they cross their own limits and did their own business.



kavita...कविता

हार जीत परिणाम समर का नही वीरता का पैमाना निश्छल जिसने युद्ध लड़ा नियति ने सत्यवीर उसे माना मेरी पलकों और नींदों का  रहा हमेशा ब...