रास्ते भी चाहते है पल यहां तन्हाहियो के ...
वे भी आजिज आ चुके हैं धूप और परछाइयों से ..
जाने कितने पैरों ने अपने बोझ से इनको दबाया..
इनकी पीड़ा को जो समझे कोई मुसाफिर ऐसा न आया ।
❤ कैलाश सती "काव्याँश"
Ways are also wanted moments for loneliness...
They too are fed up with the sun and shadows..
how many feet pressed them with their burden..
No traveler, who understood their pain, came like this..
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