यूं ही उलझा रहे ये मन , यही जीवन की सुलझन है।
जवानी स्वप्न बचपन का ,बचपन का जवानी है।
हंसती हैं जो आखें, बाहर मुस्कुराती हैं।
कभी जो झांक कर देखो, उनके अंदर भी पानी है।
मचलते ख्वाब रातों में, जो पलकों में पलते हैं
सुबह जब नींद खुलती है, अलग उनकी कहानी है।
भले चुपचाप बहती है नदी खामोश दिखती है।
अगर गहरे उतर जाओ, उसके भीतर रवानी है।
यूं ही उलझा रहे ये मन, यही जीवन की
सुलझन है।
जवानी स्वप्न बचपन का, बचपन का जवानी है।
"काव्याँश"
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