रात सुलाता, सुबह जगाता।
तू ही जग में रास रचाता।
माटी के सारे खेल खिलौने,
माटी से जोड़ा सबका नाता।
इतनी ही तेरी दुनिया तो,
दीप नयन के दिए क्यों सबको।
रंग बिरंगे पुष्प खिलाये ,
हर उपवन हर डाली पर।
पतझड़ ने जब आना ही है,
दिन यौवन के दिए क्यों इसको?
महल बने, या कुटिया सब मे,
दुःख की सुख से अमिट है यारी ।
ऐसा तेरा प्यार अश्रु से ,
मौसम सावन के दिए क्यों मुझको ?
"काव्याँश
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