न दिन की धूप की गर्मी , न रातों सी ठिठुरती हैं ।
अजब होती हैं शामें भी, पिघलतीं है न जमतीं हैं ।।
छुड़ाती हैं जब दामन ये दिन के उजालों से ।
उसी पल रात की स्याही भी आँखों में सजातीं हैं ।।
बुनती हैं अधूरे ख्वाब लिखतीं है ये पलकों पर ।
सुनहरी सुबह की उम्मीद ये मन में जगातीं हैं ।।
कोई खोया हुआ चेहरा, कोई जो साथ टूटा हो ।
अपना सा कोई साया या कोई हाथ छूटा हो ।।
सभी जज़्बात इनमे है मधुर अहसास देती है ।
इनमे खास है सब कुछ ये शामें खास होती हैं...
"काव्याँश "
Neither the heat of the sun of the day nor the chills of the night.
Even the evenings are strange, they do not melt or freeze.
When you get rid of it from the light of day.
At that very moment the ink of the night also adorns the eyes.
Weavs, writes unfulfilled dreams, it writes on the eyelids.
They awaken the hope of a golden morning.
A lost face, someone who is broken with.
Some shadow or any hand has been left behind.
All the emotion is there, it gives sweet feeling.
Everything is special in them, these evenings are special...
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