बुधवार, 6 अप्रैल 2022

ये राही मन...My traveler heart



ये राही मन   फिर से  मेरा ,

उन  गलियों में   जाना  चाहे ।
जिन गलियों  में   चलना    सीखा , 

उन में   फिर  खो  जाना चाहे ।
ये पग मेरे फिर से ढूंढे  ,

उन राहो  के पत्थर  को  ,
जिन  पर  ठोकर खाकर सम्भला।

 सीखा  ऊँचा करना  सर  को ।।
इन नैनो को उन मीतों   से ,

 फिर मिलने की अभिलाषा,
जिन मीतों से इन्हे मिलाकर ।

सीखी दिल ने प्रेम की भाषा ।।
तोड़ बिखेरे जिन लम्हों ने ,

मन के कोमल जज्बातों को ,
मैं फिर से अब उन्हें पुकारू,

 उन दिवसों उन रातों को ।
ये कर मेरे फिर से मचलें ,

छूने को उन फूलों को ।
आहत करने में जिन फूलों ने ,

पीछे छोड़ा शूलों को ।।
उपकार ह्रदय पर उनका भी है ,

छद्म रूप धर जिन  मित्रों से ,
मनोभाव छल छलनी मेरा ,
हृदय हुआ जिन कतरों से...



"काव्याँश"


  My traveler heart once again,

Would like to go to those streets.

The streets I learned to walk

Want to be lost in them once again.

my steps once  again, searching

to those path stones,

I stumbled upon and

 Learned to raise my head high.

 these eyes desire to see those beloved,

 longing to meet them once again,

Heart learned the language of love from them.

The moments that broke,

soft feelings of heart,

I will call them again now,

 To those days and nights,

Made  me cry again and again..

these palms wish to touch those flowers.

The flowers that hurt, more than thorns.

Leaving the prongs behind.

their  gratitude is also on the heart,

friends who disguised themselves, became apart.









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