इस पाषाण धरातल में।।
कौन सुनेगा कविताओं को ।
इस भीषण कोलाहल में।।
मुख रात्रि का खिल जाता है ।
शीतल चंद्र किरण चुंबन से।।
तुषार अश्रु भी धरती पोंछे।
जो छलके विशाल गगन से।।
भंवरो ने अपनी गुंजन से ।
हर एक सुमन को महकाया।।
झरनो ने भी गीत से अपने।
निर्जन वन को हर्षाया।।
पर कौन चुनेगा आंसू ऐसे ।
टूटे अरमानों के दिल में।।
व्यथित हृदय के उदगारों को।
कौन सुनेगा नभ जल थल में।।
कौन सुनेगा कविताओं को ।
इस भीषण कोलाहल में।।
"काव्याँश "
Hearts are all insensitive,
In this stone surface.
Who will listen to the poems?
In this fierce turmoil.
The face blooms of night,
With a soft moon ray kiss.
Even tearful tears wipe the earth.
Which spilled from the vast sky.
bumblebees with their hum,
fragrances every single flower.
waterfalls also sang their songs,
and delighted the deserted forest.
But who will choose tears like this?
In the heart of broken dreams.
To the words of a troubled heart,
Who will listen in the land, air and water?
Who will listen to the poems?
In this fierce turmoil.
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